सम्मान

नवोदित लेखक था वह। पहली बार किसी गोष्ठी में भाग ले रहा था। गोष्ठी के अन्त में प्रतीक चिन्ह के रूप में आयोजकों ने सभी प्रतिभागयों के बढ़िया पैकिंग में उपहार दिए। उसे भी मिला था उपहार। बहुत प्रसन्न था वह। 
पहली बार ही भागीदारी की और उपहार मिला। घर जाकर खोला तो दीवार घड़ी निकली। लाल रंग से बड़े-बड़े अक्षरों में शीशे के ऊपर संस्था का नाम लिखा हुआ था। यह उसके लिए और बड़ी उपलब्धि थी। दीवार में कील ठोंकी और घड़ी टाँगने जा ही रहा था कि लगा घड़ी बंद है। सोचा, सैल नहीं होगा, नहीं, वह भी था। फिर...........नया सैल डाला गया परन्तु घड़ी बदस्तूर बंद रही।
बाज़ार जा कर दिखाया, दुकानदार ने कहा, इसे जाने दो बबुआ। 70 रुपए में तो नई मिल जाएगी इसे सुधारोगे तो 40रुपए लूँगा। पर घड़ी तो सम्मान स्वरूप मिली थी। सो 40 रुपए देकर सुधरवा ती गई। अब वह दीवार पर लगी घड़ी को देख-देखकर खुश हो रहा था।

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