तस्वीरें

‘‘कवि सम्मेलन तो बढि़या हो गया, साहब’’ प्रबंधक महोदय कह रहे थे और मैं सोच रही थी कि श्रोताओं से अधिक तो कवि थे। हाँ कुछ लोग नौटंकी वाले भी थे जिनके कविता पाठ से लग रहा था कि वे किसी मोर्चे पर खड़े हैं और ये मोर्चा उन्हें जीतना ही है।
फोटोग्राफर भी आया था। सभी कवियों के कई-कई चित्र ले रहा था। कवि लोग भी प्रसन्न थे। उपहार भी मिला और कविता पाठ भी कर लिया। कुछ कवियों ने तो टोकते-टोकते भी तीन-चार कविताएँ पढ़ डालीं। मंच मुश्किल से मिलता है, सो छोड़ने में थोड़ा कष्ट तो होगा ही न?
दूसरे दिन प्रबंधक महोदय कवियों के घर जाकर बीस रुपए की तस्वीर के सौ रुपए कवियों से वसूल कर रहे थे। बेचारे कवि कभी तस्वीर को देखते कभी उपहार में मिले छोटे-से खिलौने को जो उन्हें गिफ़्ट पैक के बड़े-से डिब्बे में मिला था।

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