परिवर्तन

"चार नींबू देना पंडित जी" महिला ने सब्जी की दुकान पर खड़े दुकानदार से कहा तो वह सिर खुजाने लग गया।
"अर्रे! मैं अदरक और नींबू लाना ते भूल ही गया। लेकर भी रखे थे, पर वहीं भूल गया।" महिला ने देखा, वह ताज़ा आई सब्ज़ी की बोरियाँ खोल रहा था। इस छोटी-सी बस्ती में यही दुकान नज़दीक थी। महिला को पता था कि ताज़ा सब्ज़ी लेकर पंडित इसी समय आता है। अब तो दूर जाना ही पड़ेगा सोचकर महिला निराश हो गई। वह मुड़कर जाने ही वाली थी कि उसके कानों में आवाज़ पड़ी, "इतना-सा काम भी आप ठीक ढंग से नहीं कर सकते?"
महिला ने मुड़कर देखा, दूसरी बोरी खोलता पंडित का किशोर बेटा उसे बड़ी तीखी नज़रों से देख रहा था। लड़के की माँ भी वहीं बैठी हुई थी परन्तु कुछ बोली नहीं। ग्राहकों के सामने सोलह वर्षीय बेटे के माथे पर पड़ी त्यौरियों को देख पंडित ने अपराध-बोध से सिर तो झुका लिया परन्तु बेटे के तेवर देख शायद पिता को अच्छा नहीं लगा। सो झेंप मिटाते हुए बोला,
"जितने पैसे ले गया था, उतनी ही तो सब्ज़ी ला सकता था। नहीं बचे पैसे नींबू और अदरक के लिए। थोड़ी देर में जाकर ले आऊँगा।"
महिला आवाक् खड़ी समय के परिवर्तन को देख रही थी।

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